डॉक्टर आर-एल-मेल्लीमा ( हालेन्ड )


इल्मुल-इंसान के माहिर, मुसन्निफ़ ( रचयिता ) और मुहक़्क़िक़ ( अन्वेषक ) की हैसियत से डॉक्टर आर, एल, मेल्लीमा यूरोप के इल्मी हल्क़ों में ख़ास इज्ज़त और शोहरत के मालिक हैं। वह एमसटरडम के इस्तवाई अजाइब घर में इस्लामी विभाग के अध्यक्ष और निरीक्षक है उन्हों ने बहुत सी पुस्तकें लिखी है जिन में  एक  पाकिस्तान के बारे में है। 

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 मुझे इस्लाम में क्या हुस्न नज़र आया है ? वह कोण सा खिंचाव था जो मुझे इस धर्म की तरफ़ ले आया है। यह हैं वह दो सवाल जिन के जवाब मुझे देने हैं। तो अर्ज है कि मैं ने 1919 ई० में लीडन यूनिवर्सिटी से पूर्वी ज़ुबान की शिक्षा शुरू की और प्रसिद्ध पूर्वी ज़ुबान और अरबी ज्ञान के माहिर प्रोफ़ेशर सनाऊक हरग्रोंज के बराबर जाने लगा। मैं ने अरबी में इतनी योग्यता प्राप्त कर ली कि अल-बैाजावी की तफ़सीर क़ुरआन और ग़ज़ाली की एक पुस्तक का अनुवाद कर डाला। 





             जैसे की उस ज़माने का तरीक़ा था मैं ने तारीख़े इस्लाम और इस्लामी संस्थाओं में सारी जानकारियां इन पुस्तकों से हासिल कीं, जो यूरोपियन ज़ुबानों में प्रकाशित हुई थीं। 1921 ई० में मैं मिस्र गया और वहां एक महीना तक रहा उस दौरान मैं ने अल-अज़हर का ख़ूब अध्ययन किया, चूँकि मई ने अरबी के अलावा संसकृत मलाई और जावी ज़ुबानों पर भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इस लिए 1927 ई० में हालेंड की नौआबादी जज़ाइरे शरकुल-हिन्द जो ( आजादी के बाद इंडोनेशिया कहलाया ) चला गया और जकारता में उच्च शिक्षा की एक ख़ास संस्था में जावी ज़ुबान और हिन्दुस्तानी कलचर की तारीख़ पढ़ाने लगे। अगले पन्दरह वर्ष तक मैं जावी ज़ुबान और कलचर के पुराने व नये विभागों में विशेषता प्राप्त कर चुका था। उस मुद्दत में इस्लाम और अरबी ज़ुबान से मेरा संबंध बिल्क़ुल थोड़ा रह गया था। दूसरी आलमी जंग के दौरान जब इंडोनेशिया पर जापान का क़ब्ज़ा क़ायम हुवा तो मैं भी जंगी क़ैदी बन गया। रिहाई मिली  १९४६ ई० में मैं वापस वतन चला गया और एमसटरडम के रॉयल ट्रापीकल इन्सटीटयूट में पढ़ाने लगा। यहाँ मुझे जावी ज़ुबान में इस्लाम पर एक गाइड बुक लिखने का हुक्म मिला और यूँ एक बार फिर इस्लाम से मेरा इल्मी संबंध क़ायम हो गया। यूरोप में इस्लाम पर जितनी किताबें छपीं थी तक़रीबन सारी मैं ने पढ़ डालीं। इसी सिलसिले में मुझे इस्लाम के नाम वुजूद में आने वाली रियासते पाकिस्तान  अध्ययन की ज़रुरत महसूस हुई। मैं  ने सफ़र का सामान बाँधा और 54 ई० के आख़िर में लाहौर जा पहुँचा अबतक तक इस्लाम के बारे में मेरी मालूमात ( जानकारी ) का ज़रिया यूरोपियन लिटरेचर था। मगर लाहौर में मुझे इस्लाम के बारे में बिल्कूल नये रुख़ से परिचित होने  मौक़ा मिला दिल व दिमाग़ पर उस के प्रभाव का यह आलम था कि मैं ने अपने मुसलमान दोस्तों से जुमा की नमाज़ में शरीक होने की इजाज़त माँगी जिसे उन्हों ने बहुत ख़ुशदिली से कुबूल कर लिया यहीं से मैं इस्लाम की बुलंदतरीन  क़द्रों से परिचित हुवा और मेरी ज़िन्दगी एक पवित्र इंक़लाब से परिचित से होने लगी। 

           
              मैं ने अपने आप को उसी दिन से मुसलमान समझना शुरू कर दिया था जब एक जुमा को मुझे मस्जिद के नमाज़ियों से ख़िताब का मौक़ा दिया गया और उस के बाद बहुत से दोस्तों से हाथ मिलाना पड़ा था जो अगरचे मेरे लिये अजनबी थे मगर उन के बेपनाह जोश में सगे भाईयों की मुहब्बत झलकती थी। उस के बाद मेरे दोस्त मुझे एक छोटी सी मस्जिद में ले गये वहाँ एक ऐसे साहब ख़ुतबा देते थे जो रवानी से अंग्रेजी बोल सकते थे और पंजाब यूनिवर्सिटी में काफ़ी ऊँचे पद पर थे। उन्हों ने नमाज़ियों को बताया कि इस इजतिमाअ ( सम्मलेन ) में अंग्रेज़ी शब्द ज़्यादा इस्तेमाल करने की वजह यह है कि एक दूर दराज़ के मुल्क "नेदरलैंड" से आया हुआ हमारा एक भाई इस्लाम के बारे में काफ़ी मालूमात हासिल कर सके। बहरहाल ख़िताब ख़त्म हुआ तो पहले इमाम के पीछे दो रकअतें पढ़ी गई और बाद में अलग अलग लोगों ने चन्द रकअत ऐडा कीं। 


             मैं उठ कर बाहर निकलने ही वाला था कि ख़तीब साहब जिन्हें लोग अल्लामा साहब ( मुराद है अल्लामा अलाउद्दीन सिद्दीक़ी मरहूम। पुराने सदर शोबा इस्लामियात और वाइसचान्सलर पंजाब यूनिवर्सिटी )  के लक़ब से पुकारते थे मेरी तरफ़ मुतवज्जेह हुये उन्हों ने बताया कि लोग मेरी ज़ुबान से कुछ सुनना चाहते हैं, ख़ैर मैं उठा और माइक्रोफ़ोन के सामने जाकर अपने ख़यालात का इज़हार करने लगा। मैं अंग्रेज़ी में ब्बत कर रहा था और अल्लामा साहब उस का उर्दू  में अनुवाद करते थे ।  मैं  ने बताया कि मैं  एक ऐसे मुल्क से हूँ जहाँ बहुत ही कम मुसलमान रहते हैं। मैं उन की जानिब से और अपनी तरफ़ से आप हज़रात को सलाम पेश हूँ कि आप अपनी आज़ाद व खुदमुखतार इस्लामी रियासत के मालिक हैं और इस रियासत ने ग़ुज़िशता ( गुज़रा हुआ ) सात वर्षों में काफ़ी मज़बूती हासिल कर ली हैं और ख़ुदा ने चाहा तो एक रोशन भविष्य आप का मुंतज़िर है मैं अपने वतन वापस जा कर बताऊँगा कि पाकिस्तान में मुझे मेहमान नवाज़ी और मुहब्बत व अख़लास के किस अथाह व्यवहार का योग्य समझा गया। 

       
           इन शब्दों का उर्दू में अनुवाद किया गया तो अजीब दृश्य देखने में आया। सैकड़ों नमाज़ी ग़ैर मामूली चाहत और इन्तिहाई मुहब्बत के साथ मेरी तरफ़ लपके उन के चेहरे ख़ुलूस और प्यार के नूर से चमक रहे थे और आँखों से भाईचारा और मुहब्बत की ऐसी किरनें फूट रही थीं जो दिल व दिमाग़ से आगे मेरी रूह में उतरती जा रही थीं। मैं ने यह नतीजा निकाल लिया कि इस्लाम का भाईचारगी का रिस्ता दुनिया का सब से मज़बूत रिश्ता है। सच्ची बात है उस दिन मेरी ख़ुशी का कोई ठिकान नहीं था। 
   
    
           यूँ पाकिस्तान के मुसलमानों ने मुझ पर साबित कर दिया कि इस्लाम सिर्फ़ क़वानीन का एक मजमुआ नहीं है बल्कि मुहब्बत का रवाँ दवाँ ज़मज़म भी है जो प्यासी रूहों को तरोताज़ा करता और वीरान दिलों में सदाबहार फूल खिलाता है यह आला अख़लाक़ी क़द्रों का वह हसीं गुलदस्ता है जिस से मुसलमान सब से पहले नवाजा जाता है। यूँ ईमान व इल्म की रौशनी ने मेरे दिल व दिमाग़ को भी रोशन कर दिया और मैं ने इस्लाम क़ुबूल करने का बाक़ायदा एलान कर दिया। 

                                                                                                                                                                                   अब मैं यह बताऊँगा की कौन सी बातों ने मुझे प्रभावित किया:-
  1. सिर्फ़ एक उत्तम व श्रेष्ट हस्ती, अल्लाह का इक़रार, यह नज़रिया फ़ितरत के इतना क़रीब है कि सूझ बुझ रखने वाला कोई भी इंसान इसे आसानी के साथ समझ सकता है अल्लाह बड़ा ही बेनियाज़ है सारी दुनिया उसी की मोहताज हैं वह किसी की औलाद नहीं मगर हर चीज़ को उसी ने पैसा किया और सारी दुनिया में कोई भी उस का हमसर ( बराबर ) नहीं है वह हिकमत, ताक़त और हुस्न का मम्बा ( सोता ) है वह बड़ा ही मेहरबान और बहुत ही ज़्यादा सख़ी ( दयावान ) है। 
  2. अल्लाह का अपनी दुनिया, जानदार और अशरफ्फुल मख़लूक़ात ( मानवजाति ) से सीधा संबंध है। उस तक पहुँचने के लिए किसी दूसरे ज़रिये की ज़रूरत नहीं इस्लाम में ईसाइयत की तरह पापाइयत  तसव्वुर नहीं इस मज़हब में इंसान अपने कर्मो के लिए आज़ाद व ख़ुदमुख़तार पैदा किया गया है यह दुनिया उस के लिए इम्तिहान का घर है जहाँ उसे दूसरी जिन्दगी के लिए तयारी करना है वख अपने अच्छे बुरे का ख़ुद ज़िम्मेदार है और किसी दूसरे की क़ुर्बानी उसे कुछ फ़ायदा नहीं पहुँचा सकती। 
  3. "मजहब में कोई ज़बरदस्ती नहीं "   " सच्चाई जहाँ से भी मिलके उसे क़ुबूल कर लो "  इस्लाम के इन सुनहरे उसूलों में रवादारी और हक़शनासी का जो जौहर पाया जाता है उस की मिसाल दुनिया के किसी धर्म में नहीं मिलती। 
  4. इस्लाम इंसानों को नस्ल रंग और इलाक़े से अलग हो कर भाईचारगी के रिश्ते में बाँधता है और सिर्फ़ यही वह धर्म है जिस ने अमली तौर पर इस उसूल को अपना कर दिखा भी।  मुसलमान दुनिया में कहीं भी हों वह दूसरे मुसलमानों को अपना भाई समझते हैं खुदा के सामने सरे इंसान एक सा दर्जा ( पद ) रखते हैं इस का सब से खुबसूरत और रूहपरवर ( प्राणवर्धक ) प्रदर्शन हज के मौक़ा पर एहराम बाँध कर किया जाता है। 
  5. इस्लाम जिन्दगी में रूह और माद्दे दोनों के महत्व को स्वीकार करता है इंसान की ज़ेहनी व रूहानी परवरिश का गहरा संबंध उस की शारीरिक जरूरतों के साथ जुड़ा हुआ है उसे जिन्दगी में ऐसा अंदाज़ इख़तियार करना चाहये कि रूह और शरीर अपने अपने दायरों में तरक़्क़ी कर सकें। 
  6. शराब औरत दूसरी नशीली चीज़ों से रोकने का काम अपने अन्दर वह महानता रखता है  जिस ने इस्लाम को दूसरे धर्मों के मुक़ाबिले में सदियों आगे ला खड़ा किया है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    ✭✭✭✭✭✭✭✭✭                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

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